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जनवरी, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

शहर.....

चित्र
काटने को दौड़ता है अब तो ये शहर...कंक्रीट की बिल्डिंगो के अथाह जंगल और इन ऊंची-ऊंची बिल्डिगों पे चमचमाती लाइटें नकली सी लगती है....I खिड़की पर टंगा वो कत्थई पर्दा, हर सुबह मुँह चिढ़ाता है मुझें...और वो चॉकलेटी सोफ़ा ...?? वो तो हर शाम बिन बुलाये मेहमान की तरह देखकर आंखे तरेरता है....I सामने टीवी पर भौंकते न्यूज़ एंकर्स देर रात तक कान फाड़ते है....I चौड़ी सपास सड़को पर दौड़ती, वो वो काली सी कार हर सुबह कहीं ले तो जाती है मुझे, शाम को वापस भी छोड़ जाती है...पर सफ़र है की ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेता.....I

जनपथ....

जनपथ की मार्केट में कपड़ों की ढ़ेरों के बीच में से कपड़े छांटते,उठाते और रखते हुए घंटा निकल गया I  "चलो ना आकाश ! क्या कर रहे हो?... हनुमान मंदिर चलना है I" " रुको ना अनुराधा ! शायद कोई साइज की सफेद शर्ट मिल जाए, कल इंटरव्यू के लिए जाना है I" "अब चलो ना आकाश ! मै थक गई हूं... 'पैंतीस-पैतीस ..ले लो पैतीस' सुन-सुन के ... पूरी दिल्ली जैसे पैंतीस में यही बिक रही हो I" "अनुराधा ! थक तो मैं भी गया हूं, जब भी इस मार्केट में आता हूं, हर बार यह मुझे मेरी औकात का एहसास कराती है I  "चलो चलते हैं... " I " बस जॉब लगने दो अनुराधा ! Neezam's में लेकर चलूंगा तुम्हे I " "छोड़ो ना आकाश ! मैं तो हनुमान मंदिर की कचौड़ीओ में ही खुश हु I " " ध्यान से क्रॉस करना, रीगल की ये रेड लाइट बड़ी खतरनाक है I " "क्या कर रहे हो आकाश !? उसे घूर-घूर के देखना बंद करो, उसका बॉयफ्रेंड है उसके साथ में I " " तुम भी ना अनुराधा !..." "चलो न अनुराधा ! रिवोली में आज कोई मूवी देख के आते है I " ...