जनपथ....
जनपथ की मार्केट में कपड़ों की ढ़ेरों के बीच में से कपड़े छांटते,उठाते और रखते हुए घंटा निकल गया I
"चलो ना आकाश ! क्या कर रहे हो?... हनुमान मंदिर चलना है I"
" रुको ना अनुराधा ! शायद कोई साइज की सफेद शर्ट मिल जाए, कल इंटरव्यू के लिए जाना है I"
"अब चलो ना आकाश ! मै थक गई हूं... 'पैंतीस-पैतीस ..ले लो पैतीस' सुन-सुन के ... पूरी दिल्ली जैसे पैंतीस में यही बिक रही हो I"
"अनुराधा ! थक तो मैं भी गया हूं, जब भी इस मार्केट में आता हूं, हर बार यह मुझे मेरी औकात का एहसास कराती है I "चलो चलते हैं... " I
" रुको ना अनुराधा ! शायद कोई साइज की सफेद शर्ट मिल जाए, कल इंटरव्यू के लिए जाना है I"
"अब चलो ना आकाश ! मै थक गई हूं... 'पैंतीस-पैतीस ..ले लो पैतीस' सुन-सुन के ... पूरी दिल्ली जैसे पैंतीस में यही बिक रही हो I"
"अनुराधा ! थक तो मैं भी गया हूं, जब भी इस मार्केट में आता हूं, हर बार यह मुझे मेरी औकात का एहसास कराती है I "चलो चलते हैं... " I
" बस जॉब लगने दो अनुराधा ! Neezam's में लेकर चलूंगा तुम्हे I "
"छोड़ो ना आकाश ! मैं तो हनुमान मंदिर की कचौड़ीओ में ही खुश हु I "
" ध्यान से क्रॉस करना, रीगल की ये रेड लाइट बड़ी खतरनाक है I "
"छोड़ो ना आकाश ! मैं तो हनुमान मंदिर की कचौड़ीओ में ही खुश हु I "
" ध्यान से क्रॉस करना, रीगल की ये रेड लाइट बड़ी खतरनाक है I "
"क्या कर रहे हो आकाश !? उसे घूर-घूर के देखना बंद करो, उसका बॉयफ्रेंड है उसके साथ में I "
" तुम भी ना अनुराधा !..."
" तुम भी ना अनुराधा !..."
"चलो न अनुराधा ! रिवोली में आज कोई मूवी देख के आते है I "
" कल तुम्हें इंटरव्यू के लिए जाना है ना?,पहले मंदिर चलो सीधे " I
" जॉब तो लग ही जाएगी अनुराधा ! जब लगनी होगी... पिछली बार भी तो इंटरव्यू से पहले लेकर आयी थी मंदिर.. क्या हो गया..? उस टकले खूसट को Sales और Marketing का डिफरेंस भी न समझा पाया ढ़ग से इंटरव्यू में ...I "
"आकाश ! इसमें तुम्हारी क्या गलती, वह कुछ और ही जवाब मन में सोच के बैठा होगा, इसका ये मतलब तो नहीं कि तुम्हारा जवाब गलत था " I
"अनुराधा तुम हो के आओ ना मंदिर से , मै बाहर ही मिलता हूं" I
"अभी चुप-चाप चलो पहले.."I
" कल तुम्हें इंटरव्यू के लिए जाना है ना?,पहले मंदिर चलो सीधे " I
" जॉब तो लग ही जाएगी अनुराधा ! जब लगनी होगी... पिछली बार भी तो इंटरव्यू से पहले लेकर आयी थी मंदिर.. क्या हो गया..? उस टकले खूसट को Sales और Marketing का डिफरेंस भी न समझा पाया ढ़ग से इंटरव्यू में ...I "
"आकाश ! इसमें तुम्हारी क्या गलती, वह कुछ और ही जवाब मन में सोच के बैठा होगा, इसका ये मतलब तो नहीं कि तुम्हारा जवाब गलत था " I
"अनुराधा तुम हो के आओ ना मंदिर से , मै बाहर ही मिलता हूं" I
"अभी चुप-चाप चलो पहले.."I
"अनुराधा देखो ना उस बूढी औरत को हर किसी के पीछे गिड़गिड़ाती भाग रही है, कुछ मांगने के लिए... वह तो यहीं रहती है.. 24 घंटे ..इसी मंदिर के सामने...जब उसका कुछ नहीं किया तुम्हारे हनुमान जी ने तो मेरा क्या करेंगे?..."
"सही कह रहे हो आकाश !मेरा भी मूड नहीं आज ... चलो, घर चलते हैं..I
दोनों ने सड़क क्रॉस किया सामने शिवाजी स्टेडियम से 840 No. में चढ़ गए I पीछे की सीट खाली पड़ी थी..I
"सही कह रहे हो आकाश !मेरा भी मूड नहीं आज ... चलो, घर चलते हैं..I
दोनों ने सड़क क्रॉस किया सामने शिवाजी स्टेडियम से 840 No. में चढ़ गए I पीछे की सीट खाली पड़ी थी..I
हथेलियों को पलटते हुए " तुम्हारे हाथ की लकीरें बहुत कुछ कहती हैं आकाश !,कुछ अच्छा होगा देखना तुम एकदिन ..."
" मेरे हाथ की अधूरी लकीरें तो तुम्हारे हाथों में पूरी होती है अनुराधा !... ..दिखाओ ना...." I
जाने कब करोलबाग़ पार हुआ और पटेल नगर आ गया ... दोनों उतरे..कुछ दूर साथ चले .. और फिर रंजीत नगर दो गलियों में खों गए....I
" मेरे हाथ की अधूरी लकीरें तो तुम्हारे हाथों में पूरी होती है अनुराधा !... ..दिखाओ ना...." I
जाने कब करोलबाग़ पार हुआ और पटेल नगर आ गया ... दोनों उतरे..कुछ दूर साथ चले .. और फिर रंजीत नगर दो गलियों में खों गए....I
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